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‘मेरी ख़ामोशी है’ अनुपम रॉय द्वारा प्रस्तुत एक सुगम और भावपूर्ण गीत है। यह गीत प्रेम की गहराइयों और आंतरिक संवेदनाओं को बयां करता है। अनुपम रॉय की मास्टरपीस लिरिक्स और मधुर धुन ने श्रोताओं के दिलों में अपनी एक खास जगह बना ली है। इस गीत में संगीत की सरलता के साथ-साथ भावनाओं की गहराई को खूबसूरती से उकेरा गया है, जो इसे सुनने में बेहद मनमोहक बनाता है। ‘मेरी ख़ामोशी है’ उन सभी के लिए एक एहसास पैदा करता है जो अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करने में कठिनाई महसूस करते हैं।
तेरे ही ज़िक्र की जासूसी
मेरी खामोशी है
रहूँ मैं चुप क्यूँ
बातूनी मेरी खामोशी है
जलते बुझते हर्फ़ हैं जो
होठों पे ये बर्फ क्यूँ हो
इन सवालों का तू जवाब है
सुन ज़रा
तेरे ही ज़िक्र की जासूसी
मेरी खामोशी है
रहूँ मैं चुप क्यूँ
बातूनी मेरी खामोशी है
दिल तेरा चकोरे सा भागा क्यूँ है
चाँद बगल में तेरा
कंधों पे ये ख्वाब ऐसा लदा क्यूँ है
तकिये पे रख तो ज़रा
छुपे हैं जो दिल के
सुराग दिखा दूँ तुझे
तेरे ही ज़िक्र की जासूसी
मेरी खामोशी है
रहूँ मैं चुप क्यूँ
बातूनी मेरी खामोशी है
दिल के बिछौने जो थे कोरे-कोरे
रंग से खिलने लगे
ख्वाब के बगीचे धागा-धागा चुने
फुरसत से सिलने लगे
कहाँ से ये सीखा?
हुनर बता दिल मेरे...
तेरे ही ज़िक्र की जासूसी
मेरी खामोशी है
रहूँ मैं चुप क्यूँ
बातूनी मेरी खामोशी है
जलते बुझते हर्फ़ हैं जो
होठों पे ये बर्फ क्यूँ हो
इन सवालों का तू जवाब है
सुन ज़रा...
तेरे ही ज़िक्र की जासूसी
मेरी खामोशी है
रहूँ मैं चुप क्यूँ
बातूनी मेरी खामोशी है