00:00
06:33
कैलाश खेर का गीत 'अदियोगी (द सोर्स ऑफ योगा)' एक प्रेरणादायक संगीत रचना है, जो योग की गूढ़ता और आध्यात्मिकता को दर्शाता है। इस गीत में खेर की विशिष्ट आवाज़ और गहरी बोलयोग्यता ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया है। गाने का उद्देश्य योग के महत्व को जागरूक करना और आत्मशांति की ओर मार्गदर्शन करना है। 'अदियोगी' ने भारतीय संगीत प्रेमियों में लोकप्रियता हासिल की है और इसके संगीत ने कई पुरस्कार भी जीते हैं।
दूर उस आकाश की गहराइयों में
इक नदी से बह रहे हैं आदियोगी
शून्य सन्नाटे टपकते जा रहे हैं
मौन से सब कह रहे हैं आदियोगी
योग के इस स्पर्श से अब
योगमय करना है तन-मन
साँस शाश्वत सनन-सननन
प्राण गुंजन घनन-घननन
उतरे मुझमें आदियोगी
योग धारा छलक छन-छन
साँस शाश्वत सनन-सननन
प्राण गुंजन घनन-घननन
उतरे मुझमें आदियोगी
उतरे मुझमें आदियोगी
♪
सो रहा है नृत्य, अब उसको जगाओ
आदियोगी, योग डमरू डगडगाओ
श्रृष्टि सारी हो रही बेचैन देखो
योग वर्षा में मुझे आओ भिगाओ
प्राण घुँगरू खनखनाओ
खनक खन-खन, खनक खन-खन
साँस शाश्वत सनन-सननन
प्राण गुंजन घनन-घननन
उतरे मुझमें आदियोगी
योग धारा छलक छन-छन
साँस शाश्वत सनन-सननन
प्राण गुंजन घनन-घननन
उतरे मुझमें आदियोगी
उतरे मुझमें आदियोगी
♪
पीस दो अस्तित्व मेरा
और कर दो चूरा-चूरा
पूर्ण होने दो मुझे और
होने दो अब पूरा-पूरा
भस्म वाली रस्म कर दो, आदियोगी
योग उत्सव रंग भर दो, आदियोगी
बज उठे ये मन सितारी
झनन-झननन, झनन-झननन
साँस शाश्वत सनन-सननन
प्राण गुंजन घनन-घननन
साँस शाश्वत सनन-सननन
प्राण गुंजन घनन-घननन
साँस शाश्वत सनन-सननन
प्राण गुंजन घनन-घननन
उतरे मुझमें आदियोगी
योग धारा छलक छन-छन
साँस शाश्वत सनन-सननन
प्राण गुंजन घनन-घननन
उतरे मुझमें आदियोगी
उतरे मुझमें आदियोगी