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कहीं से, कहीं को भी आओ बेवजह चलें
पूछे बिना किसी से हम मिलें
तुम हो
मैं तो ये सोचता था
कि आजकल ऊपर वाले को फ़ुरसत नहीं
फिर भी तुम्हें बना के वो मेरी नज़र में चढ़ गया
रुतबे में वो और बढ़ गया
तुम को पा ही लिया
पा ही लिया मैंने यूँ जैसे मैं हूँ अहसास तेरा
पास मैं तेरे हूँ
तुम हो
बदले रास्ते, झरने और नदी
बदली दीप की टिमटिम
छेड़े ज़िंदगी धुन कोई नई
बदली बरखा की रिमझिम
बंदिशें ना रही कोई बाक़ी, तुम हो
तुम हो मेरे लिए, मेरे लिए हो तुम यूँ
खुद को मैं हार गया
तुम को, तुम को मैं जीता हूँ
किस तरह छीनेगा मुझसे ये जहाँ तुम्हें?
तुम भी हो मैं, क्या फ़िकर अब हमें?
तुम हो
गुनगुनी धूप की तरह से तरन्नुम में तुम
छू के मुझे गुज़री हो यूँ
देखूँ तुम्हें या मैं सुनूँ?
तुम हो सुकूँ, तुम हो जुनूँ
क्यूँ पहले ना आई तुम?
कैसे मुझे तुम मिल गई?
क़िस्मत पे आए ना यकीं