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आई ख़ुशी की है यह रात आई, सजधज के बारात है आई
धीरे धीरे ग़म का सागर, थम गया आँखों में आकर
गूँज उठी है जो शहनाई तो आँखों ने ये बात बताई
हमेशा तुमको चाहा और चाहा और चाहा, चाहा, चाहा
हमेशा तुमको चाहा और चाहा कुछ भी नहीं
तुम्हें दिल ने है पूजा, पूजा पूजा और पूजा कुछ भी नहीं
ना ना नहीं ना ना नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं
कुछ भी नहीं हो कुछ भी नहीं ओह कुछ भी नहीं
ख़ुशियों में भी छाई उदासी
दर्द की छाया में वो लिपटी
कहने पिया से बस ये आई
कहने पिया से बस ये आई
जो दाग तुमने मुझको दिया उस दाग से मेरा चेहरा खिला
रखूँगी इसको निशानी बनाकर माथे पे इसको हमेशा सज़ा कर
ओ प्रीतम ओ प्रीतम बिन तेरे मेरे इस जीवन में
कुछ भी नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं कुछ भी नहीं
बीते लमहों की यादें लेकर बोझल क़दमों से वो चलकर
दिल भी रोया और आँख भर आई
मन से आवाज़ है आई
वो बचपन की यादें वो रिस्ते वो नाते वो सावन के झूले
वो हँसना वो हँसाना वो रूठके फिर मनाना
वो हर इक पल मै दिल में समाये दिये में जलाये
ले जा रहीं हूँ मैं ले जा रहीं हूँ मैं ले जा रहीं हूँ
ओ प्रीतम ओ प्रीतम बिन तेरे मेरे इस जीवन में
कुछ भी नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं कुछ भी नहीं
हमेशा तुमको चाहा और चाहा चाहा, चाहा
और चाहा, चाहा, चाहा
और चाहा, चाहा, चाहा, हाँ चाहा, चाहा, चाहा
बस चाहा, चाहा, चाहा हाँ चाहा, चाहा, चाहा
हाँ चाहा, चाहा, चाहा, और चाहा, चाहा, चाहा
और चाहा, चाहा, चाहा