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‘दिल ढूँढता है’ फिल्म ‘मौसम’ का एक मशहूर गाना है जिसे भूपिंदर सिंह ने गाया है। इस गीत के संगीतकार आर.डी. बुर्मन हैं और बोल गुलज़ार ने लिखे हैं। 1975 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में यह गाना अपने मधुर राग और गहरे भावों के लिए बेहद लोकप्रिय हुआ। ‘दिल ढूँढता है’ आज भी श्रोताओं के बीच प्रिय है और भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम काल के उत्कृष्ट उदाहरणों में से एक माना जाता है।
दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन
दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन
दिल ढूँढता है फिर वो ही...
♪
जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
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जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को
आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को
औंधे पड़े रहे कभी करवट लिए हुए
दिल ढूँढता है...
ओ, दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन
दिल ढूँढता है फिर वो ही...
♪
या गर्मियों की रात जो पुरवाइयाँ चलें
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या गर्मियों की रात जो पुरवाइयाँ चलें
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागे देर तक
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागे देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए
दिल ढूँढता है...
ओ, दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन
दिल ढूँढता है फिर वो ही...
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बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
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बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूँजती हुईं खामोशियाँ सुने
वादी में गूँजती हुईं खामोशियाँ सुने
आँखों में भीगे-भीगे से लम्हें लिए हुए
दिल ढूँढता है...
ओ, दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन
दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन
दिल ढूँढता है फिर वो ही...
♪
दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
दिल ढूँढता है फिर वो ही फ़ुरसत के रात-दिन