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"ये जो हलकी हलकी ख़ुमारिया" बॉलीवुड फिल्म "बजरंगी भाईजान" का एक बेहद प्रिय गीत है, जिसे प्रसिद्ध गायक राहत फतेह अली खान ने गाया है। इस गीत को संगीतबद्ध करने में प्रीतम का योगदान रहा है और इसके बोल कौसर मुनीर ने लिखे हैं। "बजरंगी भाईजान" में यह गीत प्रेम, संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों को खूबसूरती से प्रस्तुत करता है, जिससे यह दर्शकों के दिलों में उतर गया। राहत फतेह अली खान की मधुर आवाज़ ने इस गीत को संगीत प्रेमियों के बीच खासा लोकप्रिय बना दिया है।
ये जो हल्की-हल्की ख़ुमारियाँ
हैं मोहब्बतों की तैयारियाँ
♪
कैसे कहूँ? कैसे भला रोके तू मुझको गुनाहों से
हाय, रोके तू मुझको गुनाहों से
पीता जाऊँ मैं तो, यारा, तेरी इन बहकी निगाहों से
हाय, तेरी इन बहकी निगाहों से
अब जो ग़लत था वो भी सही है
बेहोश भी हूँ, पी भी नहीं है, हाए
ये जो हल्की-हल्की...
ये जो हल्की-हल्की ख़ुमारियाँ
हैं मोहब्बतों की तैयारियाँ
♪
हैं मोहब्बतों की तैयारियाँ
ये जो हल्की-हल्की ख़ुमारियाँ
कैसे कहूँ? कैसे भला रोके तू मुझको गुनाहों से
हाय, रोके तू मुझको गुनाहों से
♪
छुपते-छुपाते झूमे, ज़ुल्फ़ें लबों को चूमे
छुपते-छुपाते झूमे, ज़ुल्फ़ें लबों को चूमे
उफ़, करें शैतानियाँ
सर पे चढ़ाया इन्हें, इतना बनाया इन्हें
उफ़, हुईं दीवानियाँ
मुझ पे यूँ हँसती है
ये ज़ुल्फ़ें क्यूँ मेरी तरह मस्ती हैं?
अब जो ग़लत था वो भी सही है
बेहोश भी हूँ, पी भी नहीं है, हाए
ये जो हल्की-हल्की...
ये जो हल्की-हल्की ख़ुमारियाँ
हैं मोहब्बतों की तैयारियाँ
हैं मोहब्बतों की तैयारियाँ
ये जो हल्की-हल्की ख़ुमारियाँ
♪
मेरी ज़िंदगी के बदले मुझे एक शाम दे-दे
मेरी ज़िंदगी के बदले मुझे एक शाम दे-दे
जो किसी को ना दिया हो मुझे वो इनाम दे-दे
तेरी आरज़ू करूँ मैं, तेरे ख़ाब मैं सजाऊँ
होते जो भी आशिक़ी के मुझे सारे काम दे-दे
हो, सारे ग़मों का है ये हरज़ाना
पिला ना पैमाना आँखों-आँखों में
जो मैंने सोचा ये, जो मैंने चाहे ये
चला जाए ना कोई दूर ना रे, ना रे, ना
अब जो ग़लत था वो भी सही है
बेहोश भी हूँ, पी भी नहीं है, हाए
ये जो हल्की-हल्की ख़ुमारियाँ
हैं मोहब्बतों की तैयारियाँ
♪
ये जो हल्की-हल्की ख़ुमारियाँ
हैं मोहब्बतों की तैयारियाँ
हैं मोहब्बतों की तैयारियाँ
ये जो हल्की-हल्की ख़ुमारियाँ