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"खुद को क्या समझती है" एक लोकप्रिय हिंदी गीत है, जिसे प्रसिद्ध गायक अभिजीत ने गाया है। यह गीत 1991 की फिल्म "सनम बेवफा" में शामिल है, जिसके संगीतकार लोकेश–मनोज ने संगीत दिया था। इस गीत के बोल सुशील बिंद्रा ने लिखे हैं और इसे सांची नौटियाल ने निर्देशित किया था। "खुद को क्या समझती है" अपने मधुर सुर और भावपूर्ण गीत के कारण दर्शकों में काफी पसंद किया गया था, जिसने अभिजीत की आवाज को और अधिक लोकप्रिय बनाया।
जहाँ वो जाएगी, वहीं हम जाएँगे
जहाँ वो जाएगी, वहीं हम जाएँगे
♪
खुद को क्या समझती है, इतना अकड़ती है
College में नई-नई आयी एक लड़की है
खुद को क्या समझती है, इतना अकड़ती है
College में नई-नई आयी एक लड़की है
हो, यारों ये हमें लगती है सरफ़िरी
अरे, आओ चखा दें मज़ा
खुद को क्या समझती है कितना अकड़ती है
College में नई-नई आयी एक लड़की है
♪
तौबा-तौबा (ये अदा), दीवानी है (क्या पता)
हे, पूछो ये किस बात पे इतना इतराती है
जाने किस की (भूल है), ये गोभी का (फूल है)
बिल्ली जैसे लगती है, makeup जब करती है
गालों पे तो लाली है, होठों पे गाली है
ये जो नख़रे वाली है, लड़की है या है बला
खुद को क्या समझता है, इतना अकड़ता है
College का नया-नया मजनूँ ये लगता है
हमसे हो गया अब इसका सामना
आओ, चखा दें मज़ा
खुद को क्या समझता है, इतना अकड़ता है
College का नया-नया मजनूँ ये लगता है
♪
हमको देता (है गुलाब), नीयत इसकी (है खराब)
हो, सावन के अँधे को तो हरियाली दिखती है
क्या इसको ये (होश है), ये धरती पे (बोझ है)
मर्द है ये बस नाम का, आख़िर किस काम का
चेहरा अब क्यूँ लाल है? बदली क्यूँ चाल है?
अरे, इतना अब क्यूँ बेहाल है, हम भी तो देखें ज़रा
खुद को क्या समझता है, इतना अकड़ता है
College का नया-नया मजनूँ ये लगता है
♪
हमसे आँखें (चार करो), छोड़ो झगड़ा (प्यार करो)
Hey, यारों के हम यार हैं लड़ना बेकार है
हो, उलझन में ये (पड़ गए), शायद हम से (डर गए)
दावे करते प्यार के देखो ये हार के
प्यार की ये रीत है हार भी जीत है
सबसे बढ़ के प्रीत है, लग जा गले दिलरुबा