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प्रतीक कुहाड़ का "कसूर" एक दिल को छू लेने वाला गाना है, जिसे उनकी अनूठी आवाज और गहरे शब्दों ने दर्शकों में खासा लोकप्रियता हासिल की है। यह गाना प्रेम, पछतावा और आत्मनिरीक्षण के भावों को बखूबी दर्शाता है। "कसूर" में प्रतीक की लिरिकल प्रतिभा स्पष्ट रूप से झलकती है, जो श्रोताओं को अपने अनुभवों से जोड़ने में सक्षम है। इस गाने ने संगीत प्रेमियों के बीच गहरी छाप छोड़ी है और प्रतीक कुहाड़ की संगीत यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया है।
हाँ, मैं गुमसुम हूँ इन राहों की तरह
तेरे ख्वाबों में, तेरी ख्वाहिशों में छुपा
ना जाने क्यों, है रोज़ का सिलसिला
तू रूह की है दास्तान
तेरे ज़ुल्फ़ों की ये नमी
तेरी आँखों का ये नशा
यहाँ खो भी जाऊँ तो मैं
क्या कसूर है मेरा?
♪
क्यों ये अफ़साने इन लम्हों में खो गए
हम घायल थे इन लफ़्ज़ों में खो गए
थे हम अनजाने, अब दिल में तुम हो छुपे
हम हैं सेहर की परछाइयाँ
तेरे साँसों की रात है
तेरे होंठों की है सुबह
यहाँ खो भी जाऊँ तो मैं
क्या कसूर है मेरा?
क्या कसूर है मेरा?
♪
तेरे झुलफ़ों की ये नमी
तेरी आँखों का ये नशा
यहाँ खो भी जाऊँ तो मैं
क्या कसूर है मेरा?
तेरे साँसों की रात है
तेरे होंठों की है सुबह
यहाँ खो भी जाऊँ तो मैं