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Lamhe - Raghav Chaitanya

Lamhe

Raghav Chaitanya

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03:19

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Lyric

कुछ लमहे अधूरे से, कुछ मैं करूँ पूरे ये

कुछ तुम से, कुछ हम से रास्ते ये

जो चले बेख़बर ये हवा, मैं उड़ता ही रहा

क्यूँ चला बेसबर? हवाओं में घुले तेरे संग नए रंग

क़दमों में है लगा जो नया सा समाँ हुआ

कमी लफ़्ज़ों की मेरे ढूँढता क्यूँ फिर रहा?

मंज़िल है दूर कहीं, चलता हुआ मैं सरफिरा

कोई राज़ है तेरा

ये मन कहे मेरा हर साज़ में यहाँ

कोई राज़ है तेरा

ये मन कहे मेरा हर साज़ में यहाँ

खुश हूँ ज़रा सा, मैं खुद में छिपा सा

मैं चलता हुआ लमहे सा

खुश हूँ ज़रा सा, मैं खुद में छिपा सा

मैं चलता हुआ लमहे सा

कुछ है, कुछ है मुझ में जो अंदर है बसा

क्यूँ रुका? जो छिपा इन साँसों में मिले

जो कहे, ना दिखे नज़रों से ही मेरी, जो नमी सा हुआ

राहें चलती जो धूप में, सँभलता मैं ज़रा

नाव खड़ी जो छाँव में, बैठा हुआ अजनबी सा

ये मन कहे मेरा, ना घर, ना पता

बस उड़ता ही रहा

मैं शाम कुछ नया, जब रंगों से जुड़ा

मैं उड़ती पतंग सा

खुश हूँ ज़रा सा, मैं खुद में छिपा सा

है वक्त ये लमहे सा

खुश हूँ ज़रा सा, मैं खुद में छिपा सा

है वक्त ये लमहे सा

- It's already the end -