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Hoor - Sachin-Jigar

Hoor

Sachin-Jigar

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Lyric

लफ़्ज़ों के हसीं धागों में कहीं

पिरो रहा हूँ मैं कब से में हुज़ूर

कोशिशें ज़रा है निगाहों की

तुझे देखने की खता ज़रुर

"दीवानगी" कहूँ इसे या है मेरा फ़ितूर

कोई हूर जैसे तू, कोई हूर जैसे तू

भीगे मौसम की भीगी सुबह का है नूर

कैसे दूर तुझसे मैं रहूँ?

खामोशियाँ जो सुनले मेरी

इनमें तेरा ही ज़िक्र है

खामोशियाँ जो सुनले मेरी

इनमें तेरा ही ज़िक्र है

ख्वाबों में जो तू देखे मेरे

तुझसे ही होता इश्क़ है

"उल्फ़त" कहो इसे मेरी ना कहो है मेरा क़सूर

कोई हूर जैसे तू, कोई हूर जैसे तू

भीगे मौसम की भीगी सुबह का है नूर

- It's already the end -