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तेरी सूरत जो भरी रहती है आँखों में सदा
अजनबी लोग भी पहचाने से लगते हैं मुझे
तेरे रिश्तों में तो दुनियाँ ही पिरो ली मैने
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एक से घर हैं सभी, एक से हैं बाशिन्दे
अजनबी शहर मैं कुछ अजनबी लगता ही नहीं
एक से दर्द हैं सब, एक से ही रिश्ते हैं
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उम्र के खेल में एक तरफ़ा है ये रस्सकशी
एक सिरा मुझको दिया होता तो कुछ बात भी थी
मुझसे तगडा भी है और सामने आता भी नहीं
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सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की
मुस्कुराये भी पुराने किसी रिश्ते के लिए
कल का अखबार था बस देख लिया, रख भी दिया
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वो मेरे साथ ही था दूर तक मग़र एक दिन
मूड के जो देखा तो, वो और मेरे साथ न था
जेब फ़ट जाए तो कुछ सिक्के भी खो जाते हैं
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चौधवे चाँद को फ़िर आग लगी है देखो
फ़िर बहुत देर तलक आज उजाला होगा
राख हो जाएगा जब फ़िर से अमावस होगी