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फ़ूलों में सज रहे हैं...
फ़ूलों में सज रहे हैं श्री वृंदावन बिहारी
फ़ूलों में सज रहे हैं श्री वृंदावन बिहारी
और संग में सज रही है वृषभानु की दुलारी
फ़ूलों में सज रहे हैं...
टेढ़ा सा मुकुट सर पर रखा है किस अदा से
करुणा बरस रही है करुणा-भरी निगाह से
बिन मोल बिक गई हूँ...
बिन मोल बिक गई हूँ जब से छवि निहारी
फ़ूलों में सज रहे हैं
बहियाँ गले में डाले जब दोनों मुस्कुराते
सब को ही प्यारे लगते, सब के ही मन को भाते
इन दोनों पे मैं सदक़े...
इन दोनों पे मैं सदक़े, इन दोनों पे मैं वारी
फ़ूलों में सज रहे हैं
चुन-चुन के कलियाँ जिसने बंगला तेरा बनाया
दिव्य आभूषणों से जिसने तुझे सजाया
उन हाथों पे मैं सदक़े...
उन हाथों पे मैं सदक़े, उन हाथों पे मैं वारी
फ़ूलों में सज रहे हैं श्री वृंदावन बिहारी
फ़ूलों में सज रहे हैं श्री वृंदावन बिहारी
फ़ूलों में सज रहे हैं श्री वृंदावन बिहारी
और संग में सज रही है...
और संग में सज रही है वृषभानु की दुलारी
फ़ूलों में सज रहे हैं, फूलों में सज रहे हैं