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ऐ सुबह, तू जा फ़लक से, लौट जा ज़रा
रात थम के कर रही है हमसे मशवरा
ऐ सुबह, तू जा फ़लक से, लौट जा ज़रा
रात थम के कर रही है हमसे मशवरा
बादलों से कह दो जा के मैं फ़ना हुआ
बिन बताए, बिन रिझाए बस तेरा हुआ
महफ़ूज़ है मेरी बाँहों में अब से तू सदा
मैं चल पड़ूँ तेरी राहों में अब से यूँ सदा
महफ़ूज़ है मेरी बाँहों में अब से तू सदा
मैं चल पड़ूँ तेरी राहों में अब से यूँ सदा
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ऐ शिकायत, अब ज़रूरत ना रही तेरी
ऐ नसीहत, फिर मिलेंगे, है दुआ मेरी
अब फ़साना, अब ठिकाना तू मेरा हुआ
ज़िंदगी का हर बहाना तू मेरा हुआ
महफ़ूज़ है मेरी बाँहों में अब से तू सदा
मैं चल पड़ूँ तेरी राहों में अब से यूँ सदा
महफ़ूज़ है मेरी बाँहों में अब से तू सदा
मैं चल पड़ूँ तेरी राहों में अब से यूँ सदा