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सुबह सुहानी, शामें सयानी
रातें रूहानी होने लगी हैं
दिल में दबी जो अरसों से काफ़ी
बातें पुरानी होने लगी हैं
अब जो तू मुझको मिल ही गई है
पूरी कहानी होने लगी है
नींदें भी आए चैन की मुझको
बाँहों में जो तू सोने लगी है
दिल में मेरे रहो ना
कहो ना अब के "हाँ," हाँ-हाँ
नब्ज़ में तुम बहो ना
कहो ना अब के "हाँ," हाँ-हाँ
ज़ुल्फ़ें तेरी बिखरी हुईं
हो जैसे धूप निखरी हुई
होंठों से जो छुआ तूने
तो फ़िक्रे मेरी बे-फ़िक्री हुईं
पलकें झुका के, बाँहों में आ के
मुझमें समा के तू ढल सी रही है
बिखरी सी जो थी दुनिया ये मेरी
आने से तेरे सँभल सी रही है
दिल में मेरे रहो ना
कहो ना अब के "हाँ," हाँ-हाँ
नब्ज़ में तुम बहो ना
कहो ना अब के "हाँ," हाँ-हाँ