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शाम भी कोई, hmm-hmm-hmm, mhm-hmm
We're gonna need some drinks
शाम भी कोई जैसे है नदी
लहर-लहर जैसी बह रही है
कोई अनकही, कोई अनसुनी
बात धीमे-धीमे कह रही है
कहीं ना कहीं जागी हुई है कोई आरज़ू
कि बूम-बूम-बूम-पारा (पारा)
हैं ख़ामोश दोनों
जो गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
जो कहती-सुनती है ये निगाहें
गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
है ना?