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तू किसी रेल सी गुज़रती है
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
तू भले रत्ती भर ना सुनती है
मैं तेरा नाम बुदबुदाता हूँ
किसी लंबे सफ़र की रातों में
तुझे अलाव सा जलाता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
♪
काठ के ताले हैं
आँख पे डाले हैं
उनमें इशारों की चाभियाँ लगा
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काठ के ताले हैं
आँख पे डाले हैं
उनमें इशारों की चाभियाँ लगा
रात जो बाकी है
शाम सताती है
नीयत में थोड़ी...
नीयत में थोड़ी खराबियाँ लगा, खराबियाँ लगा
मैं हूँ पानी के बुलबुले जैसा
तूझे सोचूँ तो फूट जाता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
थरथराता हूँ
थरथराता हूँ
थरथराता हूँ