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Zindagi Kya Hai - Jagjit Singh

Zindagi Kya Hai

Jagjit Singh

00:00

04:56

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Lyric

आदमी बुलबुला है पानी का

और पानी की बहती सतह पर

टूटता भी है, डूबता भी है

फिर उभरता है, फिर से बहता है

ना समंदर निगल सका इसको

ना तवारीख़ तोड़ पाई है

वक्त की मौज पर सदा बहता

आदमी बुलबुला है पानी का

ज़िंदगी क्या है जानने के लिए

ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है

आज तक कोई भी रहा तो नहीं

सारी वादी उदास बैठी है

मौसम-ए-गुल ने ख़ुदकुशी कर ली

किसने बारूद बोया बाग़ों में?

आओ, हम सब पहन लें आईने

सारे देखेंगे अपना ही चेहरा

सब को सारे हसीं लगेंगे यहाँ

है नहीं जो दिखाई देता है

आईने पर छपा हुआ चेहरा

तर्जुमा आईने का ठीक नहीं

हम को Ghalib ने ये दुआ दी थी

तुम सलामत रहो १००० बरस

ये बरस तो फ़क़त दिनों में गया

लब तेरे Meer ने भी देखे हैं

पंखुड़ी एक गुलाब की सी है

बातें सुनते तो Ghalib हो जाते

ऐसे बिखरे हैं रात-दिन, जैसे...

मोतियों वाला हार टूट गया

तुम ने मुझ को पिरो के रखा था

तुम ने मुझ को पिरो के रखा था

- It's already the end -