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खाली पन्नों पे मेरे नाम को
बेमतलब यूँ ही लिखते हो क्या?
कुछ-कुछ बातों को कहने से पहले
खुद भी उनपे तुम हँसते हो क्या?
कितना बोलते, किस्से खोलते
इक पल भी नहीं क्यूँ थकते हो?
आज कल, आज कल
बैठे सोचते, खुदको पूछते
तुम कुछ और-से क्यूँ लगते हो?
आज कल, आज कल
अपने बीच में बातें जो भी हों
उनपे दोबारा गौर करते हो क्या?
हो क्या?
रातों में जो दिल लिखके भेजता
सुबह दोबारा तुम पढ़ते हो क्या?
हो क्या?
सोते देर से, फिर भी वक़्त पे
बेमतलब ही बोलो क्यूँ जगते हो?
आज कल, आज कल
बैठे सोचते, खुदको पूछते
तुम कुछ और-से क्यूँ लगते हो?
♪
मैं तो रास्तों पे यूँ चल पड़ती हूँ तो
मंज़िल कब आती-जाती
कुछ ना रहे पता
रातों की ज़ुबां, बातूनी सुबह
हाँ, शामें क्या गाती जाती
कुछ ना रहे पता
सारी रात ही हम तो चाँद को
छोड़के बस तुम्हें ही तकते क्यूँ?
आज कल, आज कल
बैठे सोचते, खुदको पूछते
तुम कुछ और-से क्यूँ लगते हो?
आज कल, आज कल
सारी रात ही हम तो चाँद को
छोड़कर बस तुम्हें ही तकते क्यूँ?
आज कल, आज कल
बैठे सोचते, खुदको पूछते
तुम कुछ और-से क्यूँ लगते हो?