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मेरा जो सफ़र है
वही मेरा घर है
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मैं चला अकेले रास्तों पे ऐसे
जैसे मेरे पीछे कोई भी ना
बढ़ता मैं गया ऐसे
जैसे मुझे कोई भी ना रोक सका
वो ढूँढ रहे देखो मंज़िल
मैंने माना रास्तों को अपना जहाँ
कभी कोई नोच-खरोच के भागे
कभी कोई पूछे, "क्या तेरा पता?"
मेरा जो सफ़र है, वही मेरा घर है
मुझको ना दुनिया की है परवाह
मैं हूँ वो मुसाफ़िर चलता रहे जो
चाहे रोके-टोके मुझे कोई भी यहाँ
मेरे जो हैं सपने, वही मेरे अपने
मुझको ना दुनिया की है परवाह
मैं हूँ वो मुसाफ़िर चलता रहे जो
चाहे रोके-टोके मुझे कोई भी यहाँ
यूँ तो मेरी भी सुबह होती थी किसी ख़ास के साथ
यूँ तो मेरे भी हाथ में होता था किसी का हाथ
तूफ़ान सा इक आया था, टूटा मैं, घबराया था
अपनों को छीना ऐसे, मैं कुछ ना कर पाया था
दिल की ज़ुबाँ, दिल की ज़ुबाँ
कह ना सका, कह ना सका
आती अभी ख़्वाबों में भी मेरी वफ़ा
मेरा जो सफ़र है, वही मेरा घर है
मुझको ना दुनिया की है परवाह
मैं हूँ वो मुसाफ़िर चलता रहे जो
चाहे रोके-टोके मुझे कोई भी यहाँ
मेरे जो हैं सपने, वही मेरे अपने
मुझको ना दुनिया की है परवाह
मैं हूँ वो मुसाफ़िर चलता रहे जो
चाहे रोके-टोके मुझे कोई भी यहाँ