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हे, दुख-भंजन, मारुति-नंदन
सुन लो मेरी पुकार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
राम सिया के प्यारे, भक्तों के सहारा
तुम देते दिलेरी, तुम बस संकट हरने वाले
तेरे भरोसे बैठा हूँ, तुमसे ही उम्मीदें
वरना मेरे अपने भी ख़ुद-ग़र्ज़ बने हैं सारे
थोड़ा सा भी नाम बने तो सारे दौड़े आते हैं
बिन पैसों के दुनिया में ना रिश्ते जोड़े जाते हैं
तेरे-मेरे रिश्ते में ना स्वार्थ भरा है कोई
झूठी सी इस दुनिया से धीरे से कटते जाते हैं
काम निकल जाने पे सारे "राम-राम" कह जाते
नाम तेरा लेने से पर काम मेरे बन जाते
साथ मिले ना औरों का पर साथ तेरा ज़रूरी है
बिन तेरे अँधेरों में हम ऐसे ही मर जाते
रहनुमा और सखा मेरा तुम में ही तलाशूँ मैं
कोई नहीं यहाँ जिनसे साँझा करूँ आँसू मैं
राम के दुलारे मेरा साथ देना हर दफ़ा
साथ तेरे बैठ छुपे दर्द मेरे बाँटूँ मैं
सिया-राम के काज सँवारे
मेरा कर उद्धार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
राम भरोसे साँस चले, राम भरोसे चले कलम
राम कथा को लिखता हूँ मैं, राम ही जाने मेरे करम
राम बसे हैं दिल में मेरे, राम बसे लिखाई में
राम भक्त ही बनूँगा मैं, ले लूँ चाहे लाख जनम
आके कभी शायर की किताबें जो तुम खोलोगे
राम कथा के छंदों में तुम नाम मेरा टटोलोगे
माना ना महान मैं जैसे रामदूत के
राम बसे हैं पर दिल के सारे कोनों में
भार पड़ा दुखों का, हल्का तेरा जीव भी
प्रभु, ये उठा लो भार, जैसे, हाँ, संजीवनी
औरों पे भरोसा ना, तुमसे है उम्मीदें पर
नाम तेरा जपे पापी मेरी जीभ भी
साफ़ होगा दिल ना मेरा, गंगाजल जो पी लूँ मैं
काले युग में रहने के भी त्रेता थोड़ा जी लूँ मैं
ख़ून भी बहा डाला तो दिखेगा वो मैला ही
काले युग का प्राणी हूँ तो छाती क्या ही चीरूँ मैं
अपरंपार है शक्ति तुम्हारी
तुम पर रीझे अवध बिहारी
तुम पर रीझे अवध बिहारी
भक्ति भाव से ध्याऊँ तोहे
कर दुखों से पार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
हे, दुख-भंजन, मारुति-नंदन
सुन लो मेरी पुकार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
पवनसुत विनती बारंबार
साफ़ होगा दिल ना मेरा, गंगाजल जो पी लूँ मैं (विनती बारंबार)
काले युग में रहने के भी त्रेता थोड़ा जी लूँ मैं (पवनसुत)
ख़ून भी बहा डाला तो दिखेगा वो मैला ही (विनती बारंबार)
काले युग का प्राणी हूँ तो छाती क्या ही चीरूँ मैं
साफ़ होगा दिल ना मेरा, गंगाजल जो पी लूँ मैं (विनती बारंबार)
काले युग में रहने के भी त्रेता थोड़ा जी लूँ मैं (पवनसुत)
ख़ून भी बहा डाला तो दिखेगा वो मैला ही (विनती बारंबार)
काले युग का प्राणी हूँ तो छाती क्या ही चीरूँ मैं