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Aaftaab - The Local Train

Aaftaab

The Local Train

00:00

03:53

Song Introduction

‘आफ़ताब’ लोकल ट्रेन का एक बेहतरीन गीत है, जो उनकी विशिष्ट धुन और गहन बोलों के लिए जाना जाता है। इस गीत में प्रेम और आशा की भावनाओं को खूबसूरती से पिरोया गया है, जो श्रोताओं के दिलों को छू लेता है। लोकल ट्रेन की ऊर्जा और सशक्त संगीत व्यवस्था ने ‘आफ़ताब’ को खास बनाया है, जिससे यह गीत लाइव परफॉरमेंस में भी उतना ही प्रभावशाली है। इस गीत ने रिलीज़ के बाद संगीत प्रेमियों के बीच काफी लोकप्रियता हासिल की है और मंच पर उनकी पहचान को और मजबूत किया है।

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Lyric

ख़ामोश भीड़ में फ़िर हो खड़े गुमशुदा

मौजूद हो यहाँ या गुम कहीं, किसको पता

जब लगे हर घड़ी कि अब इस रात की ना है सुबह कोई

कर यक़ीं, देख तू कि आफ़ताब वो हसीं है छुपा यहीं-कहीं

चेहरे में तेरे बंद वो कितने सवाल

पूछते ख़ुशी का पता, बाक़ी अभी इम्तिहाँ

है अगर राह-गुज़र पर गहरा अँधेरा, माहताब सो चुका

कर यक़ीं, हमनशीं, कि आफ़ताब वो हसीं है छुपा यहीं-कहीं

कहीं दूर शोर से एक नया दौर है

मोहताज़ ना किसी के, ना पूछे कोई तेरा नाम

खिले जहाँ बस ख़ुशी, फ़लसफ़ा बस यही

तू कर यक़ीं

जब लगे हर घड़ी कि अब इस रात की ना है सुबह कोई

कर यक़ीं, देख तू कि आफ़ताब वो हसीं है छुपा यहीं-कहीं

कहीं दूर शोर से एक नया दौर है

मोहताज़ ना किसी के, ना पूछे कोई तेरा नाम

खिले जहाँ बस ख़ुशी, फ़लसफ़ा बस यही

तू कर यक़ीं

- It's already the end -