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Din Kuch Aise Guzarta Hai Koi - Jagjit Singh

Din Kuch Aise Guzarta Hai Koi

Jagjit Singh

00:00

05:19

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Lyric

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

जैसे एहसाँ उतारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

आईना देखकर तसल्ली हुई

आईना देखकर तसल्ली हुई

हमको इस घर में जानता है कोई

हमको इस घर में जानता है कोई

हमको इस घर में जानता है कोई

हमको इस घर में जानता है कोई

पक गया है शहर पे फल शायद

पक गया है शहर पे फल शायद

फिर से पत्थर उछालता है कोई

फिर से पत्थर उछालता है कोई

जैसे एहसाँ उतारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

तुम्हारे ग़म की डली उठाकर

ज़बाँ पे रख ली है देखो मैंने

ये क़तरा-क़तरा पिघल रही है

मैं क़तरा-क़तरा ही जी रहा हूँ

देर से गूँजते हैं सन्नाटे

देर से गूँजते हैं सन्नाटे

जैसे हमको पुकारता है कोई

जैसे हमको पुकारता है कोई

जैसे हमको पुकारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

जैसे एहसाँ उतारता है कोई

- It's already the end -